Wednesday, August 26, 2015

कुछ पंक्तियाँ .......

सोच के परेशान हूँ की इतना बुरा में कैसे हो गया ,
में बदला नहीं मुद्दतों से फिर भी मैं ऐसा क्यों हो गया ,
सोच रहा हु की में इतना बुरा कैसे हो गया ,
लगता है अब तक सपनो में जी रहा था ,
हसीन थे ख़्वाब वो जो अब तक जी रहा था ,
पता नहीं कैसे टूट गए एक बुरा ख्वाब बनके ,
सोच रहा हूँ की इतना बुरा कैसे हो गया,
हर पल जब बीता तब लगा हसीं ,
पर न जाने क्यों वह लम्हे हसीं यादें न बन सकी,
सोच के परेशान हूँ की इतना बुरा में कैसे हो गया,
चाहा नहीं किसीको की मुद्दतें भी लम्हे लगे ,
तरसा नहीं कभी इतना की लम्हे भी मुद्दतें लगे ,
पर बस एक  सवाल है ज़ेहन में जो कचोट रहा है ,
की इतना बुरा में कब और कैसे हो गया ,
पता नहीं क्यों पर पल कभी इतने नहीं काटते थे ,
कभी हुआ नहीं ऐसा की अपने भी लगते है,
कुछ बड़ा अजीब सा समां है,
हर पल अपने में ही खोया है,
सिहर उठता हूँ बस इक ख्याल से ,
की इतना बुरा में कैसे हो गया,
हर रात के बाद दिन की राह तकता हूँ,
इस घनघोर अन्धकार में उजाला ढूढ़ता हूँ,
लगता है डर की कहीं इस अन्धकार में खो न जाउ,
लगता है सभी मेरे साथ है ,
पर फिर न जाने क्यों इस भीड़ में तनहा सा हूँ ,
उम्मीद नहीं थी इस अंजाम की ,
की बैठ के समय मुझसे ही पूछेगा ,
की इतना बुरा में कैसे हो गया  .…

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नहीं अब रोना नहीं है
नहीं अब रोना नहीं है
मुश्किलें राहों में कल भी थी आज भी है
पर अब थमना नहीं है
ग़म पहले भी थे आज भी है 
पर अब टूटना नहीं है
ज़िन्दगी को अब जीना नहीं है
पर उसे सिखाना है की जीते कैसे है
नहीं अब रोना नहीं है।।।

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