Tuesday, December 22, 2009

ये साल ..

ज़िन्दगी यूँ तो बड़ा ही संजीदा शब्द है पर मैंने इसे बस ऐसे जी दिया
इससे पहले की आप इन उपरोक्त पंक्तियों को देख मेरी उम्र का हिस्साब लगाये में बता दू की मेरी उम्र २१ साल हो गयी है। अब आप ये मत सोचना की ये मेने इसलिए बता दिया क्यूंकि अब में कानून विवाह के बंधन में बंधने योग्य हो गया हूँ। और ये तो कतई मत कहना की देखो हम कितना मुर्ख है हम तो कुछ सोच भी नहीं रहे और ये अपने आपको तिस्मार्खा शाबित करने में लगा है। वैसे अगर देखा जाये तो ऐसा करने में कोई हर्ज़ नहीं है , वैसे भी आज कल सभी यही करने में लगे है ।
हो गयी न गलती मुझे पता था की हमेशा की तरह यहाँ भी जो कहना वो छोड़ के सब कह दूंगा , पर वैसे में आज कहूँ क्या मुझे खुद को भी नहीं पता। बस इच्छा कर रही थी की बहुत दिनों से कुछ लिखा नहीं है सो अब क्यूँ न लिखा जाये क्यूँकी यहाँ लिखने में न स्याही लगती है और न ही कागज़ लगता है। वैसे आज जब की ये साल अपने अंत की ओर है और एक नया साल अपने पलक पावडे बिछाए हमारा इंतज़ार कर रहा है। वैसे तो विगत साल मेरे लिए बहुत ही अच्छा रहा जैसा की हर साल रहता है पर ये साल कुछ मायनो में बहुत ही ख़ास था।
जैसा की में पहले भी कह चूका हूँ २१ का हो गया हूँ तो ये ख़ास तो होना ही था। ऊपर से एक इंजीनियरिंग का स्टुडेंट जो की बहुत सी माताओ के लिए अच्छी खबर है। पर मै अभी जल्दी में नहीं हूँ की अपनी इस छोटी आजाद ज़िन्दगी को किसी और के हवाले कर दू। वैसे सही बताऊ तो सही में सबसे अच्छा मेरे लिए ये साल इसीलिए था की मेने २१ का पड़ाव पार कर लिया, क्यूँ की अब इसके बाद मेरे सुभ्चिंताको ने मुझे कुछ गंभीरता से लेना शुरू कर दिया है।
इस साल कुछ अच्छे दोस्त मिले जिसकी मुझे हमेशा जरुरत महसुश होती है। इन में कुछ तो ऐसे थे जिन्होंने मेरे सोचने के तरीके को ही बदल दिया। मुझे ये समझा दिया की हमे खुद की खुसी के दुसरो पे निर्भरता नहीं रखनी चैये क्यूंकि अगर ऐसा हुआ तो वाजीब है की उसके इंकार से हमे ठेस पहुंचे। मेरा नजरिया बदल दिया शायद यही कारण है की अब ग्लास आधा भरा हुआ है।
उम्मीद करता हूँ की आने वाला साल भी अच्छा रहेवैसे मै चाहूँगा की इस साल कुछ लोगो की शिकायत दूर कर दूँ और यही मेरा इस साल "प्रण"का होगा। जैसे की कुछ की कहना है-
माँ ,"तुम्हे पता है की जानवर भी अपनी जगह साफ़ कर के बैठते है .."
निशांत ,"अगर ऐसे ही हर बात दिल पे लेता रहा तो तेरा कुछ नहीं हो सकता ..."
संकेत ,"यार तू हर छोट्टी-2 बात पर नाराज़ क्यूँ हो जाता है ..."
बंटी,"द ओथेर इज हेल "
पापा ,"मेरा प्रिंस उठता तो जल्दी है पर इसकी घडी इंग्लैंड मै है ..."

वैसे कोशिस होगी की इनकी शिकायत पहले दूर करू ।
और मेरी तरफ से आप सभी को नया साल मुबारक हो.... ।



Wednesday, November 4, 2009

शादियाँ - १

ये जो शब्द है "शादी" ये है बड़ा छोटा पर है बहुत वजनी...
अब आप सोच रहे होंगे की आज अचानक हमे शादियों की याद कैसे आन पड़ी। तो भइया हम आप को बता दे की अभी इनका सीज़न है ।
अब आप सोच रहे होंगे की कैसा अनारी है "भला शादियों का भी कोई सीज़न होता है। आज तक तो भारत वर्ष मै मोटे तौर पर ४ और वैसे ६ सीज़न होते आए है ... अब ये शादियों का कौन भला सीज़न होने लग गया... क्या पहले ही ये ४ कम थे जो आप ये नया उठा लाये । "
अब इस पर तो मै सिर्फ़ इतना ही कहूँगा की मै त्यौहार बना ने वाला कौन होता हूँ॥ ये तो उन कुछ महँ आत्माओ का काम है जो पुरे दिन बेठे बस यही सोचते है की कैसे उन्हें कोई "नोटिस" करे॥ तभी तो बेठे - २ अगर इन्हे कुछ न मिले तो ये जगहों का नाम ही बदल देते है...
अब बॉम्बे ऊऊओह्ह्ह्ह्ह माफ़ कीजिये गा मुंबई का नाम हर पञ्च साल मै बदल जाता है... अब इससे ज्यादा परेशानी उन लीगों को नही मगर उनकी कही मानकर हम पचता रहे है...
वैसे ये सब मुद्दे हमारे नही है तो हमे बोलना नही चाहिए ... तो इससे पहले की हम मुद्दा भटके हम आपको आज कुछ आप बीती बता देना चाहते है...
शादियाँ जैसा की हमारा शीर्षक है तो जाहिर सी बात है की हम इसी बारे मै बकेंगे.... अब हम कोई बड़े ज्ञाता तो है नही की जो आपको इसके बारे मै कोई बहुत बड़ा ज्ञान दे देंगे और न ही हमरेसाथ ये दुर्घटना घटित हुई है जो हम आपको इससे बचने या इससे होने वाली हानि के बारे मै बता दे । हम तो यहाँ सिर्फ़ इतना बता देना कहते है की शादियों मै जाने से पहले आप क्या - २ तयारी कर के जाए...
१) तो पहला नियम तो यही है की आप इक दम सज संवर के जाए , अब आप सोच रहे होंगे की किसी और की शादी हमारे सजने का क्या मतलब । तो मतलब तो यह है है की कभी - कभी इन्ही शादियों मै हमें अपना होने वाला "जीवन साथी" मिल जाता है।
२) फ़िर हिन्दी के कुछ मुहावरों को याद कर ले जैसे की "दूर के ढोल सुहावने ", "ऊंट चढ़े कुता काटना " आदि ।
३) कभी किसी बनिए के साथ शादी मै न जाए। अब हमारा किसी बनिए के साथ कोई बैर तो है ही नही... बड़ी ही सीधी साधी जाती होती है वो क्या कहते है अंग्रेजी मै "डाउन टू एअर्थ" होते है॥ बफ़र सिस्टम मै भी ज़मीं पे बेथ के कहेंगे.... और किसी भी चीज को इसलिए नही कहेंगे क्योकि उसका स्वाद अच्छा है पर इसलिए की उसका दाम बहुत अच्छा है...
अब हमारे पड़ोस के अग्गार्वाल अंकल है उन्हें ही लीजिये (हम बीकानेरी खाने के बड़े शौकीन होते खास कर के मिठायिओं के ), जब मै प्लेट लगाने लगा तो वो बोले बेटा मेरा तो पेट ख़राब है तो मै तो थोड़ा ही लूँगा क्यूँ न तुम भी मेरे साथ हई हो लो.... मुझे लगा चलो अच्छा है की सास्टे मै निपट जायेंगे... तो पता चला की अंकल ने प्लेट में १० कत्लियाँ आधी प्लेट हलवा , ५ पीस घेवर और थोडी सी जलेबियाँ ... मेने कहा अंकल "इतना" वो बोले क्या करू पेट ख़राब है न इससे ज्यादा खा नही सकता... मगर एक दो पीस के बाद मेरी हालत ख़राब होने लगी तो मेने कहा अंकल अब नही खा पाउँगा तो वो बोले जूठा नही छोड़ना .... मुझे लगा की उनके विचार कितने नेक है बाद में पता वो ऐसा इसलिए कह रहे थे क्यूंकि मिठाई में ६५० रु किलो बादाम , ९८० रु किलो पिस्ता , ३०० रु किलो घी, ४५ रु किलो चीनी वगरह वगरह लगी थी... फिर हम गए स्टाल्स पर। मुझे लगा अब ये वहां पर पिच्च्के तो ज़रूर खाएंगे पर नही ये तो सीधा इस सर्द मौसम में जा भीड आइस क्रीम से और और लेने लगे दो दो हाथ... अब जहीर सी बात है की उन्होंने सिर्फ़ आइस क्रीम ही क्यूँ चुनी।



अब देखो मजाक मजाक में मेने कितना टाइम ख़राब कर दिया ....
मेने कहा था न की मेरे ये आदत बहुत ख़राब है की में अपने टोपिक से भटक जाता हूँ ।
पर अब क्यूँ की रात बहुत हो गई बाकि फ़िर कभी बताएँगे॥
तो आप मजा लीजिये इस मौसम का और में तो चला...


Sunday, June 21, 2009

So here I am writing for my first post in the world of blogging. I wanted post one for more than a one and a half year ago but it took me this long to have one. It was not so that I was so dumb that I didn't knew about how to post one but rather it was like that I was a bit lazy..
It was not just that I was that lathargeic but there were some thoughts like I might be criticised by the people around me or even become a laughing stock for them. Rather being having a fear of becoming a laughing stock there were some more thoughts that were haunting me was like will I be able to express myself or justify my point of view on that particular topic (which is still not in existence as I haven't thought of one till now) and so on..
Its not that I have overcome these thoughts but its like that now I dont care about these things. As by writing /posting a blog I am getting a chance to express myself and give point of view about the topic. Because what matters most is how to express yourself in the best possible way,rather than imitating someone's thought.