Wednesday, November 4, 2009

शादियाँ - १

ये जो शब्द है "शादी" ये है बड़ा छोटा पर है बहुत वजनी...
अब आप सोच रहे होंगे की आज अचानक हमे शादियों की याद कैसे आन पड़ी। तो भइया हम आप को बता दे की अभी इनका सीज़न है ।
अब आप सोच रहे होंगे की कैसा अनारी है "भला शादियों का भी कोई सीज़न होता है। आज तक तो भारत वर्ष मै मोटे तौर पर ४ और वैसे ६ सीज़न होते आए है ... अब ये शादियों का कौन भला सीज़न होने लग गया... क्या पहले ही ये ४ कम थे जो आप ये नया उठा लाये । "
अब इस पर तो मै सिर्फ़ इतना ही कहूँगा की मै त्यौहार बना ने वाला कौन होता हूँ॥ ये तो उन कुछ महँ आत्माओ का काम है जो पुरे दिन बेठे बस यही सोचते है की कैसे उन्हें कोई "नोटिस" करे॥ तभी तो बेठे - २ अगर इन्हे कुछ न मिले तो ये जगहों का नाम ही बदल देते है...
अब बॉम्बे ऊऊओह्ह्ह्ह्ह माफ़ कीजिये गा मुंबई का नाम हर पञ्च साल मै बदल जाता है... अब इससे ज्यादा परेशानी उन लीगों को नही मगर उनकी कही मानकर हम पचता रहे है...
वैसे ये सब मुद्दे हमारे नही है तो हमे बोलना नही चाहिए ... तो इससे पहले की हम मुद्दा भटके हम आपको आज कुछ आप बीती बता देना चाहते है...
शादियाँ जैसा की हमारा शीर्षक है तो जाहिर सी बात है की हम इसी बारे मै बकेंगे.... अब हम कोई बड़े ज्ञाता तो है नही की जो आपको इसके बारे मै कोई बहुत बड़ा ज्ञान दे देंगे और न ही हमरेसाथ ये दुर्घटना घटित हुई है जो हम आपको इससे बचने या इससे होने वाली हानि के बारे मै बता दे । हम तो यहाँ सिर्फ़ इतना बता देना कहते है की शादियों मै जाने से पहले आप क्या - २ तयारी कर के जाए...
१) तो पहला नियम तो यही है की आप इक दम सज संवर के जाए , अब आप सोच रहे होंगे की किसी और की शादी हमारे सजने का क्या मतलब । तो मतलब तो यह है है की कभी - कभी इन्ही शादियों मै हमें अपना होने वाला "जीवन साथी" मिल जाता है।
२) फ़िर हिन्दी के कुछ मुहावरों को याद कर ले जैसे की "दूर के ढोल सुहावने ", "ऊंट चढ़े कुता काटना " आदि ।
३) कभी किसी बनिए के साथ शादी मै न जाए। अब हमारा किसी बनिए के साथ कोई बैर तो है ही नही... बड़ी ही सीधी साधी जाती होती है वो क्या कहते है अंग्रेजी मै "डाउन टू एअर्थ" होते है॥ बफ़र सिस्टम मै भी ज़मीं पे बेथ के कहेंगे.... और किसी भी चीज को इसलिए नही कहेंगे क्योकि उसका स्वाद अच्छा है पर इसलिए की उसका दाम बहुत अच्छा है...
अब हमारे पड़ोस के अग्गार्वाल अंकल है उन्हें ही लीजिये (हम बीकानेरी खाने के बड़े शौकीन होते खास कर के मिठायिओं के ), जब मै प्लेट लगाने लगा तो वो बोले बेटा मेरा तो पेट ख़राब है तो मै तो थोड़ा ही लूँगा क्यूँ न तुम भी मेरे साथ हई हो लो.... मुझे लगा चलो अच्छा है की सास्टे मै निपट जायेंगे... तो पता चला की अंकल ने प्लेट में १० कत्लियाँ आधी प्लेट हलवा , ५ पीस घेवर और थोडी सी जलेबियाँ ... मेने कहा अंकल "इतना" वो बोले क्या करू पेट ख़राब है न इससे ज्यादा खा नही सकता... मगर एक दो पीस के बाद मेरी हालत ख़राब होने लगी तो मेने कहा अंकल अब नही खा पाउँगा तो वो बोले जूठा नही छोड़ना .... मुझे लगा की उनके विचार कितने नेक है बाद में पता वो ऐसा इसलिए कह रहे थे क्यूंकि मिठाई में ६५० रु किलो बादाम , ९८० रु किलो पिस्ता , ३०० रु किलो घी, ४५ रु किलो चीनी वगरह वगरह लगी थी... फिर हम गए स्टाल्स पर। मुझे लगा अब ये वहां पर पिच्च्के तो ज़रूर खाएंगे पर नही ये तो सीधा इस सर्द मौसम में जा भीड आइस क्रीम से और और लेने लगे दो दो हाथ... अब जहीर सी बात है की उन्होंने सिर्फ़ आइस क्रीम ही क्यूँ चुनी।



अब देखो मजाक मजाक में मेने कितना टाइम ख़राब कर दिया ....
मेने कहा था न की मेरे ये आदत बहुत ख़राब है की में अपने टोपिक से भटक जाता हूँ ।
पर अब क्यूँ की रात बहुत हो गई बाकि फ़िर कभी बताएँगे॥
तो आप मजा लीजिये इस मौसम का और में तो चला...